Sunday, March 8, 2020

ये तो तय है कि वो अब लौट के ना आएगा

कौन उन खिडकियों से चीख के बुलाएगा


सूखी हुई बल्लियों पे टिकी टपकती सी छत

और आँगन के कोने पड़ा सूना तखत

सब रोते हैं परेशां हैं सिसकते हैं

कौन अब शेर की कहानियाँ सुनाएगा


मटमैले किवाड़ की वो जंग लगी सांकल

वोह नए शहर की पुरानी बाखल

कितना शोर करते है पर किस दरजा सूने हैं

क्या खबर थी कि सब एक रोज़ बदल जायेगा


वो पिंजरे कि और "मिट्ठू मिट्ठू " की पुकार

कच्चे आँगन के एक लौटे दरख़्त का ख़याल

ताख पे राखी वो चुनयती पानदान

वो चूल्हे पे पड़े फुकनी चिमटे के निशा


वो सिल बट्टे पे पिसती कबीत की चटनी

कौन वो नात गुनगुनाएगा

ये तो तय है कि वो अब लौट के ना आएगा...

कौन उन खिडकियों से चीख के बुलाएगा ???????