ये तो तय है कि वो अब लौट के ना आएगा
कौन उन खिडकियों से चीख के बुलाएगा
सूखी हुई बल्लियों पे टिकी टपकती सी छत
और आँगन के कोने पड़ा सूना तखत
सब रोते हैं परेशां हैं सिसकते हैं
कौन अब शेर की कहानियाँ सुनाएगा
मटमैले किवाड़ की वो जंग लगी सांकल
वोह नए शहर की पुरानी बाखल
कितना शोर करते है पर किस दरजा सूने हैं
क्या खबर थी कि सब एक रोज़ बदल जायेगा
वो पिंजरे कि और "मिट्ठू मिट्ठू " की पुकार
कच्चे आँगन के एक लौटे दरख़्त का ख़याल
ताख पे राखी वो चुनयती पानदान
वो चूल्हे पे पड़े फुकनी चिमटे के निशान
वो सिल बट्टे पे पिसती कबीत की चटनी
कौन वो नात गुनगुनाएगा
ये तो तय है कि वो अब लौट के ना आएगा...
कौन उन खिडकियों से चीख के बुलाएगा ???????